मैं और मेरा कंप्यूटर - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 15 अप्रैल 2012

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मैं और मेरा कंप्यूटर

My+Computer
कभी कभी 
मेरे कंप्यूटर की
सांसें भी हो जाती हैं मद्धम
और वह भी बोझिल कदमों को
आगे बढ़ाने में असमर्थ  हो जाता है
मेरी तरह

और फिर
चिढ़ाता है मुझे
जैसे कोई छोटा बच्चा
उलझन में देख किसी बड़े को
मासूमियत से मुस्कुराता है
चुपचाप !

कभी यह मुझे 
डील डौल  से चुस्त -दुरुस्त
उस बैल के तरह
दिखने लगता है जो बार-बार
जोतते ही बैठ जाता है अकड़कर
फिर चाहे कितना ही कोंचो
पुचकारो
टस से मस नहीं होता!

कभी जब काफी मशक्कत के  बाद
चलने लगता है
तो  दिल  सोचता है
शायद  वह भी समझ गया है
हम दोनों की नियति
चलते रहने की है

कभी सोच में डूबती हूँ कि
इसकी किस्‍मत मेरे साथ जुड़ी है
या कि मेरी इसके साथ
तय नहीं कर पाती

फिर सोचती हूँ
चलो जैसा भी है  
है तो मेरा अपना
जिस पर मैं अपना पूरा हक़ जताती हूँ
निर्विरोध, निसंकोच, निर्विकार होकर
जो संसार में अन्यत्र कहाँ संभव?

अब दोनों को एक आदत सी हो चली है
निरंतर साथ-साथ रहने की
सरपट दौड़ लगाकर नहीं तो
कम से कम एक दूजे का 
यूँ ही साथ निभाते चलने की 

  ... कविता रावत